मध्ययुग के सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक परिदृश्य पर हम यदि नजर डाले तो पाते हैं कि इन तीनों ही क्षेत्रों में तत्कालीन परिस्थितियँा मूल्यों के लिए तरस रही थी। जन-सामान्य […]
कबीर की काव्य संवेदना और आधुनिक बोध – मोहिनी पाण्डेय
कबीर मध्यकाल के निर्गुण विचारधारा के कवि हैं । आधुनिक काल में कबीर का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता हैं धार्मिक कल के कबीर अकेले कवि हैं ,जिन्होंने […]
विभिन्न आलोचकों की दृष्टि में कबीर – ऐश्वर्या पात्र
हिंदी साहित्य के इतिहास में कबीर एक ऐसे प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति हैं जिनकी प्रासंगिकता आज भी विद्यमान है। उनके जिक्र मात्र से हमारे समक्ष वही मध्ययुगीन पतनोंन्मुख समाज का चित्र […]
कवि राकेश धर द्विवेदी की कविताएँ
वह नदी नहीं माँ है। मेरे बचपन में मेरी माँ ने एक किस्सा सुनाया कि गंगा माँ को आर-पार की पियरी चढ़ाई और बदले में पुत्ररत्नका उपहार पाया धीरे-धीरे मैं […]
विहाग वैभव की कविताएँ
1• खुल रहे ग्रहों के दरवाजे मैंने जिस मेज पर रखा अपना स्पर्श उसी से आने लगी दो खरगोशों के सिसकने की आवाज़ हाथ से होकर शिराओं में दौड़ने लगी गिलहरियाँ […]
राहुल प्रसाद की पाँच कविताएँ मौलिक
1.तब समझो प्यार हुआ हमको जब आस मिलन की जागी हो जब हृदय बने अनुरागी हो जब मदहोशी सी छा जाए और ख़ामोशी आ जाए जब एक नाम ही रमते […]
ये बेटी की कैसी आज़ादी (कविता) – आरती
तूने क्यों मुझे इस रिश्ते से आज़ाद कर दिया ऐसा क्या गुनाह किया था जो मेरा ही तिरस्कार कर दिया ना मोह थी ना माया थी […]
राहुल प्रसाद की गज़लें
1 भूख से बेहाल होकर मरने लगे हैं लोग बेचकर खुद को बसर करने लगे हैं लोग इस शहर में गोलियां अब इस कदर चलने लगी हैं घर से कैसे […]
संवर्धन (कहानी) – सविता मिश्रा
डोरबेल बजी जा रही थी। रामसिंह भुनभुनाये “इस बुढ़ापे में यह डोरबेल भी बड़ी तकलीफ़ देती है।” दरवाज़ा खोलते ही डाकिया पोस्टकार्ड और एक लिफ़ाफा पकड़ा गया। लिफ़ाफे पर बड़े […]
जंगल का भूत (कहानी) – मनीष कुमार सिंह
बाहर जोरों की बारिश हो रही थी। अनेक पेड़ों की पत्तियों से टकराती बॅूदों का शोर नजदीक के जंगल के सन्नाटे को भंग करने की बजाए सघन बना रहा था। […]