
अनुक्रमणिका संपादकीय डॉ. आलोक रंजन पांडेय शोधार्थी निराला के काव्य में सामाजिक यथार्थ – डॉ. काळे मदन भाऊराव भारतीय ज्ञान परंपरा और भक्ति काव्य – डॉ. जयन्त कुमार कश्यप हिंदी […]
अनुक्रमणिका संपादकीय डॉ. आलोक रंजन पांडेय शोधार्थी निराला के काव्य में सामाजिक यथार्थ – डॉ. काळे मदन भाऊराव भारतीय ज्ञान परंपरा और भक्ति काव्य – डॉ. जयन्त कुमार कश्यप हिंदी […]
हर मौसम अपने संग अपने तरह के विमर्श और अपनी तरह की चिंताएं लेकर आता है । जैसे इस समय पर जब हिन्दी दिवस का उत्सव मनाया जा रहा है […]
हिन्दी साहित्य के इतिहास में करीब करीब दो शताब्दियों तक छायावाद का प्रभाव रहा है। हिन्दी साहित्य कालविभाजन के अन्तर्गत छायावाद का काव्य प्रमुख रहा है। कालविभाजन करनेवाले सभी इतिहासकारों […]
भारतीय ज्ञान परंपरा एक विशाल नदी की तरह है जो सदियों से प्रवहमान है। इस ज्ञान परंपरा के भीतर अनेकानेक विशेषताएं हैं। इन विशेषताओं के सम्मिलित रूप हमारे जीवन के […]
सारांश सिनेमा केवल एक मनोरंजक साधन ही नहीं, अपितु एक जनजागृति और शिक्षा प्रदान करने का साधन भी है। विकलांग वर्ग एक ऐसा वर्ग है जो समाज का एक अभिन्न […]
कुंजी वाक्य:सॉत, फूलदेई, ठेस्या देवता, गोगा-पीर, फ्यूली, मरोज, गीमा, भिटौली, लगड़, बिखोत, इगास, भैलू । सारांश तथा भूमिका : लोक पर्व हमारे समाज के सांस्कृतिक-सामाजिक समरसता के प्रतीक माने जाते […]
‘साम्प्रदायिकता’ का सवाल हिन्दुओं और मुसलमानों के धार्मिक विवादों से जुड़ा सवाल है। ‘साम्प्रदायिकता’ शब्द से घृणा उत्पन्न होती है। चाहे वह देश- दुनियां की राजनीतिक साम्प्रदायिकता हो या साहित्य […]
हिंदी का ‘लोक’ शब्द फोक का पर्यायवाची शब्द है। जिसका अर्थ है जन या ग्राम। अतः लोक का अभिप्राय सर्वसाधारण जनता से है, वह जनता जिसकी व्यक्तिगत पहचान न होकर […]
भारत की पहचान आदि काल से ज्ञान परंपरा एक ज्ञान संस्कृति के रूप में जानी जाती रही है । अनेक प्राचीन सभ्यताएं ज्ञान के क्षेत्र में भारत की सदैव ऋणी […]
शोध सार कृष्ण भक्ति की परंपरा प्राचीन काल से देखने को मिलती है। कृष्ण के चरित्र की प्रतिष्ठा में सर्वाधिक योगदान श्रीमद्भागवतपुराण का रहा है। इसमें कृष्ण के बहुमुखी प्रतिभा […]