मीडिया समाज का आईना होता है। यही नहीं यह लोकतंत्र के चार स्तम्भ में से एक सशक्त स्तम्भ माना जाता है। स्वतंत्रता के बाद सामाजिक ,राजनीतिक और आर्थिक ढाँचे में […]
अज़ान और आरती- दीपक धर्मा
एक शाम मैं अपने एक मित्र से एक खास मुद्दे पर मशविरा करने को अपने घर से निकला। जिससे मिलने को मैं काफी दिनों से सोच रहा था। लेकिन व्यस्तता के चलते […]
अपने स्वत्व को खोजती नारी: ‘दिलोदानिश’ के संदर्भ में – लक्ष्मी विश्नोई
स्वातंत्रयोत्तर हिंदी कथा साहित्य की अभिवृद्धि में जिन महिला कथाकारों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है उनमें कृष्णा सोबती का नाम कोई नया नहीं है। नारी की धीरे-धीरे बदलती जीवन दृष्टि, […]
स्कन्दगुप्तः राष्ट्रीय चेतना का जीवन्त दस्तावेज – ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह
साहित्य मानवीय सृष्टि है, अतः वह सोद्देश्य और मनुष्यता के प्रति उत्तरदायी होती है। जयशंकर प्रसाद की रचनाओं का अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि उनकी अभिरूचि इतिहास के […]
डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर और ‘हिंदू कोड बिल’ – कुसुम संतोष विश्वकर्मा
डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर एक क्रन्तिकारी चेतना के युग पुरुष थे| उनकी दूर दृष्टि ने बहुत पहले ही स्त्री शक्ति को पहचान लिया था| उनको इस बात का ज्ञान था […]
रामवृक्ष बेनीपुरी की प्रेरक आत्मकहानी – वीना कुमारी
साहित्य के महारथी स्वर्गीय श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन राजनीति, साहित्य,और व्यक्तित्व का ऐसा अनुपम समावेश है जो शायद ही और कहीं मिलेगा । 68 साल का बेनीपुरी का जीवन […]
प्रसाद परम्परा के कवि : आलोचक “मुक्तिबोध” – डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय
गजानन माधव मुक्तिबोध नयी कविता के शिखर कवियों में से हैं |आप केवल कवि-आलोचक ही नहीं बल्कि कथाकार और संस्कृति चेता भी हैं। आप अपने प्रशस्त रूप में एक व्यक्तित्व […]
सबटाइटल लेखन एवं सबटाइटल अनुवाद: हिन्दी के लिए बड़ा अवसर – अरुणा त्रिपाठी
फ़िल्में साहित्य का एक अंग हैं और आर्थिक दृष्टि से बड़ा बाजार भी। बढ़ते वैश्वीकरण और संचार तकनीकी के विस्तार के कारण भारत विदेशी फ़िल्मों के लिए एक बड़ा बाज़ार […]
अलौकिकता के बरक्स साधारण की नियति – डॉ. राम विनय शर्मा
महाभारत का युद्ध समाप्त होने के पश्चात् कृष्ण के मन में जो संकल्प-विकल्प, जय-पराजय और नैतिकता-अनैतिकता के भाव उमड़-घुमड़ रहे थे, उस द्वन्द्वात्मक मनःस्थिति को ‘उपसंहार’ की केन्द्रीय वस्तु के […]
भूमंडलीकरण और मीडिया – रणजीत कुमार सिन्हा
सोवियत संध के विघटन के बाद वैश्वीकरण का दौर शुरू होताहै| भूमंडलीकरण ,उदारीकरण ,वैश्वीकरण आदि जिस नाम से पुकारे इसे फलने –फूलने एवं फैलाने में मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान है| […]