पहचान (लघुकथा)- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

वह पता नहीं कौन था! उस छोटे से सर्कस में, चाहे जानवर हो या इंसान, वह सबसे बात करने में समर्थ था। प्रत्येक के लिए वह एक ही प्रश्न लाया […]

एक महिला मजदूर – दीपक धर्मा

यदि कहीं कोई महिला मजदूरी कर रही होती है तो उसे इस तरह का कठोर परिश्रम करते देखकर जहन में अनगिनत सवाल उठते है। अरे….! ये एक महिला है। अपने सिर […]

टीवी में दृश्य नहीं बोलते ! – डॉ. कुमार कौस्तुभ

‘टीवी में दृश्य नहीं बोलते’- यह पढ़कर आपको अटपटा लग रहा होगा, आपको कुछ अजीब लग रहा होगा क्योंकि टीवी यानी टेलीविजन तो दृश्य माध्यम ही है जिसमें चलती-फिरती-घूमती तस्वीरें […]

संगम से सारनाथ – कृष्णानंद

भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास में इलाहाबाद का स्थान कुछ गिने-चुने नामों में आता है|प्राचीन धार्मिक इतिहास में इसे देवराज प्रयाग कहा जाता रहा है|गंगा,यमुना और अदृश्य सरस्वती का […]

रामगढ़ की गुड़िया – पूर्णिमा वत्स

उत्तराखंड के पहाड़ों के बीच एक जगह थी रामगढ़ …रामगढ़ माने तल्हा से मलहा तक की दुनिया …ऊंचाई से निचाई का संयोग…जीवन से बर्फ़ का मिलन और बर्फ़ से गर्माहट […]

आखिरी दुआ – शिवांजलि पांडेय

कथा जनवरी महीने के पूर्वार्ध की है। दिनचर्या के अनुसार सबेरे पास के रेलवे स्टेशन के ओर दौड़ने गयी थी। नित्य की भाँति सबकुछ सामान्य था । रेलवे – स्टेशन […]

मीडिया में साहित्य का बदलता स्वरूप – डॉ. कृष्णा कुमारी

मीडिया समाज का आईना होता है। यही नहीं यह लोकतंत्र के चार स्तम्भ में से एक सशक्त स्तम्भ माना जाता है। स्वतंत्रता के बाद सामाजिक ,राजनीतिक और आर्थिक ढाँचे में […]

अज़ान और आरती- दीपक धर्मा

एक शाम मैं अपने एक मित्र से एक खास मुद्दे पर मशविरा करने को अपने घर से निकला। जिससे मिलने को मैं काफी दिनों से सोच रहा था। लेकिन व्यस्तता के चलते […]

महिला फिल्मकारों की फिल्मों में स्त्री छवि और बदलता दृष्टिकोण – अंतिमा सिंह

पुरुष वर्चस्ववादी समाज में आज भी महिलाओं की दुनिया घर की चारदीवारी के भीतर सिमट कर रह जाती है।ऐसे वातावरण में महिला फिल्मकारों द्वारा उस चारदीवारी को तोड़कर पितृसत्तात्मक समाज […]

अभिनेता के रूप में भीष्म साहनी – मो. वासिक

भीष्म जी के अन्दर अभिनय के प्रति अभिव्यक्ति की भावना स्कूल के दिनों में जागृत हुई थी, जब भीष्म चैथी कक्षा में थे, तब उन्होंने स्कूल में खेले गये नाटक […]