आज का मानव इंसान नहीं,

इंसान के रूप में छिपा भेड़िया ||

डग-डग पर है खतरा-खतरा

कब क्या हो जाये किस राह पर,

वह हैवान तुम्हे मिल जाये |

नोच-नोच कर तुम्हे वह खा लेगा ||

एक अंश भी न रहेगा, तुम्हारा

सड़कों, गलियों, भवनों, चौराहों,

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा,

घर-घर में मिलेगा वह हैवान रे !

इस हैवानियत से कोई न बच सका |

उसके चंगुल से कोई न छूट सका |

इस छिपे हुए भेड़िये के मुख को,

हमें उतार फ़ेकना हैं ||

मानव को मानव बनाना

नहीं तो इस धरा पर कुछ न रहेगा शेष ||

क्यों सब कलयुग देते दोष ?

यह दोष है हम सब का,

हम सबको इसके विरुद्ध आवाज उठाना है |

चुप रहने से अब कुछ न होगा ||

यह अत्याचार नारी को कब तक सहना होगा

पर मैंने यह सहसा क्या देखा ?

आज की नारी भी हो गयी बदनाम,

उसने भी नारी जाति पर कलंक लगाया है ||

अब मैं किसे बुलाऊँ, अपनी व्यथा

किसे सुनाऊँ ? यह संसार भी हो गया बदनाम |

अब इंतज़ार के सिवा और कुछ न सूझ रहा,

कब आयेगा सतयुग ? और कब होगा

राम का राज्य, राम का आदर्श |

                                                      बस यही मेरा सपना है

बस यही मेरा सपना है ||

                                                                                                       ज्योति रावत
                  शोधार्थी
प्रयागराज

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