रोज़ आदमी
आदमी नहीं होता
कभी कभी
आदमी में एक अलग
किस्म का
आदमी होता है
जो बिल्कुल भिन्न
अवसरवादी सा होता है
जो अलग
बिल्कुल सपाट
नया चेहरा लिए
आदमियत से परे
और
गहन संवेदना लिए
अलग थलग
तेज तर्रार आदमी
होता है
आदमी आदम नहीं
नक्श आदमी सा
होता है
जो रोज़ बनता है
रोज़ बिगड़ता है
जो भी हो
आदमी से ही
आदमी बनता है

 

मनोज शर्मा

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