किरन त्रिपाठी की कविताएं

These are feelings of Soldiers जो लौट के घर न आए….. तिरंगे में लिपट कर ,जाते-जाते बहुत सारी अनकही बातें कह गए….   (1) सैनिक की चाहत “चाहत तो बहुत […]

सुभाष मुखोपाध्याय: असाधारण में साधारण (जन्मशती स्मरण)- रणजीत साहा

एक बार भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता और साहित्य अकादेमी के संयुक्त साहित्य आयोजन में भाग लेने मैं कोलकाता गया हुआ था। कार्यक्रम शुरू होने के एक दिन पहले मैं अपने […]

प्रश्न पानी से नहीं धुलते (कहानी संग्रह, दिलीप कुमार शर्मा अज्ञात) – तेजस पूनिया

सन् 1803 में इंशा अल्लाह खान कृत कहानी रानी केतकी की कहानी को हिंदी की पहली कहानी कहा जाता है। इसके बाद धीरे-धीरे इस कला में परिवर्तन होने लगा और […]

अनुक्रमणिका

संपादकीय  डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय बातों – बातों में  मैं उबलता हुआ पानी जिसे भाप बन कर ख़त्म होते रहना है (वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी जी से प्रियंका कुमारी की […]

मैं उबलता हुआ पानी जिसे भाप बन कर ख़त्म होते रहना है (वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी जी से प्रियंका कुमारी की बातचीत)

समकालीन आलोचना जगत् में वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। एक आलोचक के साथ-साथ आप एक सफल सर्जक, इतिहासकार, गद्यकार एक कुशल अध्यापक और एक अच्छे शिष्य भी […]

सामाजिक जीवन के यथार्थ दृष्टा  : मुंशी प्रेमचंद – डॉ. ममता देवी यादव

सारांश आधुनिक हिंदी साहित्य के लेखकों में मुंशी प्रेमचंद जी अग्रणी माने जाते हैं। मुंशी प्रेमचंद जी उर्दू साहित्य में भी उतने ही प्रसिद्ध हैं जितने की हिंदी साहित्य में […]

अँग्रेजी पन्नों का पर्दा – मनीषा अरोड़ा

बीसवीं सदी के मध्य से ही अँग्रेजी की साहित्यिक दुनिया में आधी आबादी के प्रश्नों को गंभीरता से जगह मिलने लगी। यह वह दौर था जब ‘उग्रवादी नारीवाद’ का तेजी […]

समकालीन सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौतियाँ और उदय प्रकाश – दीपक कुमार जायसवाल

कहानी अपने विकसित रूप में 55 के आसपास दिखती है उस वक्त देश राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से ढेर सारी चुनौतियों गुजर रहा था। आज़ादी के बाद देश की […]

प्रेमचंद की कहानियों में पारिवारिक मूल्यबोध – डॉ. रूचिरा ढींगरा   

परिवार मानव समाज की सर्वाधिक प्राचीन छोटी किंतु सुसंगठित संस्था है।  पति – पत्नी और उनकी संतान  इसके निर्मायक  होते हैं । वैश्विक सभ्यता और संस्कृति के विकास से प्रभावित […]