
क्या फ़र्क पड़ता है, दिल पर ज़ख्म एक हो या हज़ार। उठती हैं टीसें सहती हूँ अत्याचार, बेढब स्वेच्छाचार की राजनीति पर तुम पलते हो जैसे सदाबहार क्या फ़र्क पड़ता […]
क्या फ़र्क पड़ता है, दिल पर ज़ख्म एक हो या हज़ार। उठती हैं टीसें सहती हूँ अत्याचार, बेढब स्वेच्छाचार की राजनीति पर तुम पलते हो जैसे सदाबहार क्या फ़र्क पड़ता […]
चलो एक नई शुरुआत करते हैं। थोड़ी बहुत ख़ुद से ख़ुद की बात करते हैं।। देखते है क्या बह रहा है ख़ुद के अंदर। बहती हुई नदियों से मिलता समंदर। […]
दरवाजे पर आहट हुई मैंने एक अधखुले दरवाजे को खोलते हुए देखा दरवाजे पर केसरी रंग की साड़ी में लिपटी एक युवती जिसके ललाट पर सिंदुर था कुछ युवकों और […]
गौरेया इंसानों के साथ रहने वाला पक्षी वर्तमान में विलुप्ति की कगार पर जा पहुँचा है। ये छोटे-छोटे कीड़ों को खाकर प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में सहायक है। गोरैया […]
समय की मांग कहो या संस्कृति का स्वाभिमान वह अब लौट रहा है। भारत अब लौट रहा है । वह स्वयभू होने को है। हाँ, हाँ! वह स्वयंभू पहले से […]
मैं अतीत को जीत,जीत की पहली एक किरण हूँ, भारत के आते भविष्य का मैं मंगलाचरण हूँ। बदल रहा यह देश, विश्व को मैंने दिखा दिया है, मैं भिलाई […]
यह एक ऐतिहासिक फ़िल्म है। जो अच्छी तरह से किक मारती है, बीच में फड़फड़ाती है और फिर चरमोत्कर्ष में कुछ अच्छे घूंसे मारती है। पीरियड ड्रामा या ऐतिहासिक थकान […]
संपादकीय डॉ. आलोक रंजन पाण्डेय बातों – बातों में श्यामा प्रसाद मुखर्जी महाविद्यालय की प्रधानाचार्या डॉ. साधना शर्मा जी से सहचर टीम की आत्मीय बातचीत शोधार्थी लोक-गीतों में नारीस्वर – […]
आप सभी सुधी पाठकों का जो अथाह स्नेह हमारी इस पत्रिका को मिल रहा है, यह इसी का परिणाम है कि हम इस यात्रा में अब काफ़ी आगे आ पहुँचे […]