भारतीय समाज व्यवस्था में स्त्री के स्वतंत्र व्यक्तित्व की राह में बाधाएँ – शैलेन्द्र कुमार सिंह

इस पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य माना जाता है। प्रकृति की संरचना में स्त्री-पुरुष में भेद का भाव नहीं है। दोनों अपनी मूल संरचना में स्वतंत्र होते हुए एक-दूसरे […]

हिंदी आलोचकों की विहंगम दृष्टि ( सूरदास के परिप्रेक्ष्य में ) – अनिल कुमार

हिंदी आलोचना को परिष्कृत एवं समृद्ध करने में जिन आलोचकों का योगदान रहा हैं उनमें आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का नाम सर्वप्रमुख हैं। सूरदास के साहित्य […]

भारतीय भाषाओं की कृतियों के सिनेमाई रूपान्तरण का स्त्रीवादी पाठ – मनीषा अरोड़ा

स्त्री-जीवन के सच और उसकी नियति से मुठभेड़ करती हुई हिन्दी और बांग्ला के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं की कृतियों को भी हिन्दी सिनेमा ने अपने विस्तृत पटल पर जगह […]

हिन्दी साहित्य परिप्रेक्ष्य में गुरुनानक देव जी का सामाजिक एवं सांस्कृतिक देय – अभिनव

हिन्दी साहित्य में भक्ति काल विशेष रूपेण भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन एवं सम्मिश्रण का युग रहा है। विदेशी आक्रांताओं ने भारतीय दुर्बल राजव्यवस्था का लाभ उठाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। […]

विलक्षण प्रयोगधर्मी रचनाकार कृष्ण बलदेव वैद – राम विनय शर्मा

कृष्ण बलदेव वैद हिन्दी के आधुनिक, किन्तु विरल रचनाकार हैं। उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट और भय के अपने लिए एक अलग रास्ता बनाया और उस पर जीवनपर्यन्त चलते रहे। दस […]

गुरुनानक (एक दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, समाजसुधारक, कवि और देशभक्त ) – तेजस पूनिया 

10 वें सिक्‍ख गुरूओं के प्रथम गुरू गुरुनानक सिक्‍ख पंथ के संस्‍थापक थे । जिन्‍होंने धर्म में एक नई लहर उत्पन्न की । सिख गुरूओं में प्रथम गुरू नानक का […]

राकेश धर द्विवेदी की कविताएं

1. हम फिर से आयेंगे तेरे शहर को बसाने हम फिर से आयेंगें तेरे शहर को बसाने पर आज तुम न देखों हमारे पैरों पे पड़े छाले क्यों आंखे भर […]

बिनोद कुमार रजक की कविताएं

1. हिन्द के बाग में  ये कौन आया? हिन्द के बाग में यह कदम किसके है? किसके नेत्र उठे हैं? किसमें जगी ज्वालामुखी जैसी अग्नि हिन्द के खिलाफ में पहचान […]

लव कुमार लव की कविताएं

ढलती शाम दूर कहीं किनारे पर अकेला बैठा है कोई मार रहा है पत्थर पानी पर एक­एक कर झांकता है कभी दूर पहाड़ी के उस पार मन में लिए कुछ […]

साॅफ्टवेयर ( कहानी) – मनोज शर्मा

एक सूनी धूप में जब सब अपने अपने दफ़्तर के या दूसरे काज़ में व्यस्त रहते हैं इक्का दुक्का लोग ही सड़कों पर दिखते हैं पर शाम होते होते सड़क […]