महादेवी वर्मा : असाधारण काव्य में साधारणीकरण – डॉ. मनीष कुमार जैन

समय बदला, परिस्थितियाँ बदलीं, विमर्श बदले, किन्तु साधरणीकरण का महत्व कम नहीं हुआ। साधरणीकरण की अवधारणा किसी-न-किसी रूप में अखिल विश्व की साहित्यिक परंपराओं में विद्यमान रही। शब्दों व प्रस्तुतीकरण […]

महादेवी वर्मा का काव्य शिल्प – डॉ. संतोष कुमार पांडेय

शिल्प शब्द का अर्थ है निर्माण अथवा बनावट। साहित्य के संदर्भ में किसी रचना के निर्माण अथवा उसकी बनावट में जिस जिस सामग्री का उपयोग होता है उसे शिल्प के […]

एक नज़र महादेवी वर्मा पर – डॉ. सौ. तेजल मेहता

हिंदी साहित्य  जगत  आदिकाल से आधुनिक काल तक कई ‘वादो’  में फैला है किंतु जिस काल में भावुकता ,कल्पना ,मुक्ति की कामना ,रूढ़ियों के प्रति विद्रोह ,नवीन मूल्यों की स्थापना […]

महादेवी की कविता में विरह-वर्णन – प्रियंका भाकुनी

महादेवी वर्मा छायावाद की महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रही हैं। जिन्होंने अपने विशिष्ट सृजन के माध्यम से अनुभूति का सूक्ष्म चित्रण किया है। उनका लेखन दार्शनिक गंभीरता के साथ-साथ करूणा और प्रेम  […]

महादेवी वर्मा की गद्य शैली – डॉ. प्रीतम सिंह शर्मा 

उन्नीसवीं शताब्दी में हिन्दी गद्य का समुचित विकास हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारतेंदु काल में हिन्दी गद्य ने व्यवस्थित रूप धारण किया। हिन्दी साहित्य में सामान्यतः गद्य के […]

महादेवी वर्मा के काव्य में विरहानुभूति – डॉ. गरिमा जैन

प्रत्येक भाषा के साहित्य में कुछ ऐसी कालजयी रचनाएं एवं रचनाकार होते हैं जो अपनी विषयवस्तु और वर्णन शैली के कारण न केवल जन मानस को प्रभावित करते हैं बल्कि […]

महादेवी वर्मा के साहित्य में महिला सशक्तिकरण के सांस्कृतिक आयाम – बुद्धिराम

हिन्दी साहित्य के ऐतिहासिक काल विभाजन में छायावाद का विशिष्ट स्थान है, जिसके प्रमुख स्तम्भों में भी महादेवी वर्मा का विशिष्ट व दोहरा महत्वपूर्ण स्थान है। प्रथमतः जहाँ वे प्रसाद, […]

महादेवी वर्मा के गद्य साहित्य में नारी विमर्श – डाॅ. दीपक विनायकराव पवार

हिंदी साहित्य के छायावाद युग की प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित कवयित्री महादेवी वर्मा की गद्य एवं पद्य की रचनाओं से उनके व्यक्तित्व के दो पहलू देखने को मिलते हैं। उनकी कविताओं […]

छायावाद : सौंदर्य की प्रतिछाया – डॉ. ममता सिंगला

‘सत्यं शिवं सुंदरं’ का भाव आदिकाल से भारतीय साहित्य का प्राण तत्व रहा है। इसमें से सौंदर्य का संबंध सत्य और शिव दोनों से माना गया है क्योंकि जो शिव […]

‘हयवदन’ : अस्मिता की खोज – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तव

जीवन सदैव से ही आकांक्षाओं, उनकी पूर्ति के लिए होने वाली जद्दोजहद और उनके न पूरे होने से उत्पन्न होने वाले अभावों की आती-जाती लहरों का अथाह सागर है | […]