राग दरबारी जारी है बनाम लोकतंत्र की संस्थाओ से मोहभंग की कथा – डॉ. चन्दन कुमार

1945 से 2010 तक अनवरत साहित्य साधना करने वाले श्रीलाल शुक्ल का लेखन काल लगभग 65 सालों का रहा है । आजादी के बाद के भारत के गांवो ,शहरों ,कस्बों […]

हिंदी सिनेमा और नारी – पंकज गौड़

प्रस्तावना:- आधुनिक युग संचार तकनीकी का युग है। संचार माध्यमों के द्वारा ही इंसान हर खोज खबर को देख और पढ़ लेता है। आज इस कोरोना महामारी में लोगों का […]

साहित्य से सिनेमा रूपांतरण तक की मुख्य समस्याएँ – नीरज छिलवार

जब साहित्य को सिनेमा में रूपांतरित किया जाता है। तो कई प्रकार की समस्याएं सामने आती हैं। क्योंकि साहित्य और सिनेमा दोनों अलग-अलग विधा हैं। दोनों के निर्माण का तरीका-प्रक्रिया […]

साहित्य व सिनेमा – डॉ. अंजु कुमारी

साहित्य व सिनेमा समाज को दिशा निर्देश करने वाले प्रमुख मनोरंजनात्मक परंतु उद्देश्य मूलक विद्या है। साहित्य और सिनेमा दोनों पृथक विद्याएँ है। साहित्य पढ्य है वही सिनेमा दृश्य परक […]

हिन्दी सिनेमा के गीतों में महकता सावन और बारिश – डॉ. अनुपमा श्रीवास्तव

शोध सारांश हिन्दी फिल्म संगीत आज अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए हैं। शब्द (साहित्य) और स्वर (संगीत) का अद्भुत समन्वय इन गीतों में मिलता है। जब से हिन्दी फिल्मों […]

मीडिया और साहित्य : एक भाषिक अवलोकन – डॉ. राकेश कुमार दुबे

आज भूमण्डलीकरण के दौर में उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण सारा विश्व बाज़ार के रूप में स्थापित हो चुका है। बाज़ारवाद से आज समाज का कोई वर्ग, क्षेत्र अछूता नहीं है। […]

सुकून ( कविता) – संजय वर्मा “दृष्टि “

दिखावे की होड़ भी लगती मृगतृष्णा सी जब पैसों के पीछे भागता है इंसान। समय और पैसा जैसे रिश्तों से ज्यादा अहमियत रखता हो तभी दौड़ -भाग के खेल में […]

गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ

1. तुम्हारे संतान सदैव सुखी रहें  सभ्यता और संस्कृति के समन्वित सड़क पर निकल पड़ा हूँ शोध के लिए झाड़ियों से छिल गयी है देह थक गये हैं पाँव कुछ […]

हायर सेकेंडरी – सतीश सम्यक

जाती हुई सर्दी का महीना था। यही कोई लगभग 3, 3:30 का वक्त था। इस वक्त सर्दी कम ही थी पर मैंने कोट पहन रखा था । क्योंकि जब सुबह […]

वंदना गुप्ता की कविताएं

1. कविता का पानी जब से मोड़ी है तुमने अपने शब्दों की दिशा ठीक मेरी आंखों के सामने से एक अगम भाषा की आंखें अपने अनूठे बिम्ब लिए घूरती है […]