
- शहर सारा जंगल हो गया
कोई नहीं उस जंगल में अब
सब, शहर हो गया,
जंगल, शहर बनता रहा,
शहर, सारा जंगल हो गया।
दरख़्तों की ऊँचाइयाँ गिर गई,
पंछियों का घोसला खो गया,
पत्थरों के ऊँचे-ऊँचे घर
इमारतों का शहर हो गया।
एक नदी हुआ करती थी, कभी
जंगल की प्यास बुझाने को,
अब शहर के बीचोंबीच
एक गंदा नाला बहा करता है।
हवा साफ रहा करती थी, तब
पेड़ों की कोमल शाखों की,
रोज ही शहर की सड़कों पर
अब काला धुआँ उड़ा करता है।
पंछियों का मधु कलरव
जंगल का इतिहास हो गया,
कोयल का प्यारा संगीत
शहर का पथरीला शोर बन गया।
जंगल, शहर बनता रहा,
शहर, सारा जंगल हो गया।
एक दहलीज के
दो दरवाजे,
एक समय,
एक ही घर में थे जाते;
अलग-अलग
दो पाटों में भी,
दो दरवाजे;
एक ही घर की
एक ही दहलीज थे, बनाते;
कई दिनों तक
साथ-साथ थे,
दो पाटों में खुलते,
मिलकर
हाथ से हाथ मिलाते;
बँटवारे की चौकट पर
एक ही घर के है,
दो हिस्से
आधे-आधे;
एक दहलीज के
दो दरवाजे,
दो हिस्सों में खुलते
अंतहीन एक सड़क,
शहर के बीच दौड़ती है;
न दिन को रुकी, कभी
न रात को चूप होती है;
दिन ढलने के बाद, यहाँ
एक सुबह चमकती है;
रोशन इमारतें जगमगाती,
रात शोर में ढलती है;
गतिशील शहर की भीड़ में
जिन्दगी, दिशाहीन चलती है;
अंतहीन एक सड़क,
शहर के बीच दौड़ती है
अनिल कुमार केसरी





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