

“फाइटर की डायरी” ये मेरे कॉलेज लाईब्रेरी की पहली किताब है। वैसे मैं कंप्यूटर साइंस की स्टूडेंट हूं पर कहानियों और उपन्यास को पढ़ने में दिलचस्पी रखती हूं इसीलिए इस किताब के टाइटल ने ही मुझे आकर्षित किया। ये सिर्फ एक रिपोर्ताज नहीं बल्कि आज के आधुनिक युग की साहसी और बहादुर लड़कियों की संघर्ष की आत्मकथा है। जो बयां करती है समाज की वास्तविकता को, लड़कियों के सीमाओं के संदर्भ में। हर एक कोशिश कितना सफल और विफल हुई है एक सिपाही बनने के लिए वो लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने इस किताब के जरिए बहुत अच्छे तरीके से दर्शाया है। जो ये मानते हैं लडकियां घर की रसोई तक ही सीमित हैं, उनकी मानसिकता को बदलने के लिए यह एक बेहतर किताब है। जिसमें बहादुर लड़कियों की कहानी, उनकी ही ज़ुबानी सुनने को मिलेंगी और सोचने में मजबूर करेंगी कि एक किताब को उसके कवर पेज से बिल्कुल जज नहीं करना चाहिए। इस किताब में लड़कियों की अंदरुनी ज़िन्दगी की वो सारी लड़ाइयां, ठोकरें, तिरस्कार, अपमान, सहनशक्ति आदि के बारे में बहुत ही सरल तरीके से जानने को मिलेगा। साथ में एक लेखिका, उसके कर्तव्यो के बारे में, उनकी खुद की आत्मकथा जैसा महसूस करवाती है, वो भी काबिल – ए – तारीफ है। इस किताब में लेखिका एक पुलिस एकेडमी में ट्रेनिंग करने आई हर एक लड़की की कहानी को बयां कर रही है। जिसमें हर एक संकीर्णता से जूझ रही पुराने मानसिकता को टक्कर देकर अपने हौसलों का उड़ान भर रही होती है। जब अपने समाज की दरिंदगी को देखकर भरोसा उठ जाता है लड़कियों का, तब लेखिका कहती हैं –
“वर्दी क्या होती है, जानती हो? वह क्या महज कोई पोशाक होती है, जैसा कि समझा जाता है। सुनो वो पोशाक के रूप में ‘ ताकत ‘ होती है। उसी ताकत को तुम चाहती हो। जिसको कमजोर मान लिया गया है, उसे ताकत की तमन्ना हर हाल में होगी। हां, वह वर्दी तुम पर फबती है। लेकिन फबती तभी है जब वर्दीरूपी ताकत का उपयोग नाइंसाफी से लडने के लिए होता है। यह मनुष्यता को बचाने के लिए तुम्हें सौंपी गई वह ताकत है, जो तुम्हारे स्वाभिमान की रक्षा करती है। सच मानो वर्दी तुम्हारी शख्सियत का आइना है” ।




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