अनुक्रमणिका

अनुक्रमणिका संपादकीय  तेजस पूनियां बातों – बातों में  साहित्य विविध मनोदशाओं और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है : अरुणा सब्बरवाल (प्रवासी लेखिका अरुणा सब्बरवाल से बातचीत) – डॉ. दीपक पाण्डेय शोधार्थी  […]

संपादकीय

आज़ाद और जवान होता सिनेमाई पर्दा  सिनेमा हमारे आम जीवन का अब एक अभिन्न अंग बन चुका है। एक शतकीय पारी से ज़्यादा का जीवन जी चुका यह एक ऐसा […]

साहित्य विविध मनोदशाओं और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है : अरुणा सब्बरवाल (प्रवासी लेखिका अरुणा सब्बरवाल से बातचीत) – डॉ. दीपक पाण्डेय

अरुणा सब्बरवाल लंदन में रहकर हिंदी-कहानियों का सृजन कर रही हैं. आप चित्रकला में भी पारंगत हैं और आपके चित्रों में भारतीयता के अनेक रंग देखने को मिल जाते हैं. […]

इक्कीसवीं सदी का हिंदी सिनेमा : स्त्री चेतना के विविध आयाम – डॉ. सुषमा सहरावत

हिंदी सिनेमा यद्यपि मनोरंजन प्रधान और व्यावसायिक रहा है किन्तु सामाजिक मुद्दों और समसामयिक घटनाओं की अभिव्यक्ति से भी इसका जुड़ाव लगातार रहा हैI समाज के विभिन्न वर्गों-समुदायों को अपनी […]

भारतीय समाज में नौकरीपेशा नारी की समस्याएँ:  कन्नड़ फिल्म “बेंकीयल्ली अरळिद हुवू” के संदर्भ में – किरण अय्यर वी.

सार  भारतीय समाज में चाहे स्थान तथा क्षेत्र कोई भी हो नारी को हर जगह अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़नी ही पड़ती है। वैदिक काल में नारी को पुरूषों […]

माध्यम रूपान्तरण का सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक पक्ष – कृष्ण मोहन

साहित्य और सिनेमा दो स्वतंत्र विधा होते हुए भी दोनों एक दूसरे से संबंधित हैं। वर्तमान समय में फिल्में हमारे समाज के यथार्थ को प्रस्तुत करने की सशक्त माध्यम बन […]

साहित्य व सिनेमा – डॉ. अंजु कुमारी

सहायक साहित्य व सिनेमा समाज को दिशा निर्देश करने वाले प्रमुख मनोरंजनात्मक परंतु उद्देश्य मूलक विद्या है। साहित्य और सिनेमा दोनों पृथक विद्याएँ है। साहित्य पढ्य है वही सिनेमा दृश्य […]

भारतीय हिन्दी सिनेमा में गीतकार शैलेन्द्र का योगदान – बुद्धिराम

सिनेमा या फिल्मों का हमारे सामाजिक जीवन में ज्ञान, मनोरंजन, सूचना व शिक्षा की दृष्टि से अत्यन्त महत्व है। इसलिए यह हमारे जीवन का एक अहम अंग बन चुका है। […]

‘आँधी’ : आज भी समय की धार पर खरी है फिल्म – डॉ.अनिता प्रजापत

सन् 1975 में प्रदर्शित हिंदी फिल्म ‘आँधी’ भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक अनूठी और यादगार फिल्म है। इस फिल्म में मुख्य कलाकार संजीव कुमार और सुचित्रा सेन थे, जिन्होंने […]

मलयालम सिनेमा : एक सफरनामा – डॉ० प्रीति के

आज सिनेमा का विश्व भर में प्रसार हुआ है । दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में फिल्में बन रही हैं। भारत में भी सभी प्रमुख भाषाओं में फिल्में बनती हैं। […]