
हिंदी साहित्य में आधुनिक काल की शुरुआत भारतेंदु युग से मानी जाती है। भारतेंदु युग से पूर्व का साहित्य मुख्यतः काव्य विधा तथा ब्रज भाषा में लिखा जा रहा था, […]
हिंदी साहित्य में आधुनिक काल की शुरुआत भारतेंदु युग से मानी जाती है। भारतेंदु युग से पूर्व का साहित्य मुख्यतः काव्य विधा तथा ब्रज भाषा में लिखा जा रहा था, […]
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र उन युग-प्रवर्तकों में से है जिनके व्यक्तित्व के माध्यम द्वारा इतिहास की बिखरी हुई शक्तियाँ सिमट कर एक हो जाती है और जो भविष्य के लिए एक निश्चित […]
कबीर की काव्यभाषा में मुख्यतः प्रयुक्त हुए शब्दों के मूल स्रोतों के संदर्भ में उनकी सृजनशीलता का विश्लेषण बड़ा ही रोचक है। लोकजीवन से गृहीत शब्दों के मूल स्रोत के […]
1. घर दूर है साहब घर बहुत दूर है साहब पाँच मील पैदल एक कोस छकड़ा तो आधा साँस के सहारे जाएंगे ठंड है बदरी ऊपर सूखे पत्तन सी बिछी […]
“ समाज में ऐसे कौन से सतोप्रधान स्वरूप में पवित्र कारक हैं जो जीवन के उत्कर्ष एवं उन्नयन के लिए निरंतर रूप से प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं और मानव […]
भारतीय स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भारतीय नागरिकों को न केवल स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास की प्रमुख घटनाओं तथा अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के शौर्यपूर्ण संघर्षों व उनकी कुर्बानियों का सम्मानपूर्वक […]
कवि-कथकॎार-आलोचक शैलेन्द्र चौहान का संस्मरणात्मक उपन्यास उर्फ़ कथा रिपोर्ताज ‘पांव ज़मीन पर’ बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित हुआ है। लोक जीवन की लय को स्पंदित और अभिव्यक्त करती शैलेन्द्र चौहान […]
भारतीय सिनेमा में सार्थक सिनेमा बनाने वाले निर्देशकों में सत्यजित रे, बासु भट्टाचार्य आदि जैसे बंगाली फिल्म निर्देशकों का स्थान हमेशा अव्वल रहा है। लेकिन इन्हीं लोगों की पंक्ति में […]
अनुक्रमणिका संपादकीय डॉ. आलोक रंजन पांडेय बातों-बातों में ऑस्ट्रेलिया की हिंदी साहित्यकार भावना कुँवर से संवाद – डॉ. नूतन पाण्डेय शोधार्थी सिलहटी रामायण – अभय रंजन स्वाधीनता पूर्व […]
‘सहचर’ का यह अंक ऐसे समय में आ रहा है जब वातावरण शुष्क होने लगता है और गर्म हवाएं चलती हैं । फिर भी कुछ फूल हैं जो इस मौसम […]