
हिन्दी साहित्य के इतिहास में करीब करीब दो शताब्दियों तक छायावाद का प्रभाव रहा है। हिन्दी साहित्य कालविभाजन के अन्तर्गत छायावाद का काव्य प्रमुख रहा है। कालविभाजन करनेवाले सभी इतिहासकारों […]
हिन्दी साहित्य के इतिहास में करीब करीब दो शताब्दियों तक छायावाद का प्रभाव रहा है। हिन्दी साहित्य कालविभाजन के अन्तर्गत छायावाद का काव्य प्रमुख रहा है। कालविभाजन करनेवाले सभी इतिहासकारों […]
भारतीय ज्ञान परंपरा एक विशाल नदी की तरह है जो सदियों से प्रवहमान है। इस ज्ञान परंपरा के भीतर अनेकानेक विशेषताएं हैं। इन विशेषताओं के सम्मिलित रूप हमारे जीवन के […]
कुंजी वाक्य:सॉत, फूलदेई, ठेस्या देवता, गोगा-पीर, फ्यूली, मरोज, गीमा, भिटौली, लगड़, बिखोत, इगास, भैलू । सारांश तथा भूमिका : लोक पर्व हमारे समाज के सांस्कृतिक-सामाजिक समरसता के प्रतीक माने जाते […]
हिंदी का ‘लोक’ शब्द फोक का पर्यायवाची शब्द है। जिसका अर्थ है जन या ग्राम। अतः लोक का अभिप्राय सर्वसाधारण जनता से है, वह जनता जिसकी व्यक्तिगत पहचान न होकर […]
भारत की पहचान आदि काल से ज्ञान परंपरा एक ज्ञान संस्कृति के रूप में जानी जाती रही है । अनेक प्राचीन सभ्यताएं ज्ञान के क्षेत्र में भारत की सदैव ऋणी […]
शोध सार कृष्ण भक्ति की परंपरा प्राचीन काल से देखने को मिलती है। कृष्ण के चरित्र की प्रतिष्ठा में सर्वाधिक योगदान श्रीमद्भागवतपुराण का रहा है। इसमें कृष्ण के बहुमुखी प्रतिभा […]
हिंदी-साहित्य में एक सुपरिचित और प्रतिष्ठित नाम है, ‘शरद सिंह’ जिन्होंने नारी की दसदिक् पीड़ाओ को अपने साहित्य के माध्यम से अभिव्यक्ति प्रदान की है। गद्य एवं पद्य की अनेक […]
शोध सार – हिन्दी की स्त्री लेखिकाओं की आत्मकथाओं का अध्ययन करने के उपरांत यह स्पष्ट हो जाता है की उन्होंने अपने जीवन में भोगे हुए यथार्थ के अनुभवों को […]
हिंदी साहित्य में आधुनिक काल की शुरुआत भारतेंदु युग से मानी जाती है। भारतेंदु युग से पूर्व का साहित्य मुख्यतः काव्य विधा तथा ब्रज भाषा में लिखा जा रहा था, […]
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र उन युग-प्रवर्तकों में से है जिनके व्यक्तित्व के माध्यम द्वारा इतिहास की बिखरी हुई शक्तियाँ सिमट कर एक हो जाती है और जो भविष्य के लिए एक निश्चित […]