स्‍वातंत्र्योत्‍तर हिंदी उपन्‍यास : स्‍त्री आकांक्षा, मुक्‍ति‍ एवं वि‍द्रोह का स्‍वर – रजनी पांडेय / डॉ. सुशीला लड्ढा / डॉ. सुनील ति‍वारी

भारतीय समाज में परि‍वर्तन की प्रक्रि‍या वि‍द्यमान है। नारी की दशा एवं दि‍शा में परि‍वर्तन कोई अचानक उत्‍पन्‍न  अवधारणा नहीं बल्‍कि‍ एक लंबे संघर्ष का परि‍णाम है। आजादी से पूर्व […]

हिंदी सिनेमा और गीत-संगीत : अटूट पहचान – डॉ. माला मिश्रा

भारत एक ऐसा देश है जहाँ दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्मों का निर्माण होता है। बंबइया फिल्में जिन्हें बॉलीवुड कहा जाता है। भारतीय सिनेमा बाजार को करीब ढाई अरब अमेरिकी […]

लोकगीतों में स्त्री की दशा एवं दिशा – साक्षी सिंह

(अवधी लोकगीतों के विशेष सन्दर्भ में)  लोक, अर्थात किसी क्षेत्र विशेष के निवासी एवं उनकी जीवन शैली, जिस पर कि उस क्षेत्र की ऐतिहासिक, भौगोलिक एवं परंपरागत विशेषताओं का प्रभाव […]

शरद सिंह के उपन्यास ‘पिछले पन्ने की औरतें‘ में उपेक्षित आदिवासी समाज का चित्रण – रक्षा रानी

समाज का वह वर्ग जो अपने अधिकारों से वंचित रहा हो और शोषण का शिकार होता है, वह आदिवासी वर्ग है। इस वर्ग को समाज में न तो स्वीकार किया […]

उत्तर आधुनिक युवा चेतना और ‘रह गई दिशाएं इसी पार’ – सविता रानी

जब हम उत्तर आधुनिकता की चर्चा करते हैं तो हमारे समक्ष प्रश्न उठता हैं कि उत्तर आधुनिकता क्या है? उसे कैसे समझा जा सकता है? क्या वह एक सामाजिक स्थिति […]

हिंदी कविता का समकालीन परिदृश्य –   डॉ. रूचिरा ढींगरा

साहित्य अपने सर्जक के देशकाल जनित अनुभवों की अभिव्यक्ति होता है। उसकी समकालीनता ही उसे शाश्वतता प्रदान करती है। साहित्य की अन्यविधाओं कीअपेक्षा कविता में यह अधिक समग्रता से रूपायित […]

समानांतर हिन्दी सिनेमा में अभिव्यक्त लोकजीवन-संस्कृति – प्रभात यादव

सिनेमा विचारों की अभिव्यक्ति का प्रभावशाली माध्यम है। सिनेमा का उद्देश्य चाहें जो भी हो व्यवसाय/मनोरंजन करना, या कोई सामाजिक सन्देश प्रदान करना लेकिन उसका अपने समय के यथार्थ से […]

समकालीन मीडिया में पर्यावरण, वैश्वीकरण और भाषा : एक विवेचन – अर्चना पाठक

आज पर्यावरण की सारी समस्याएं इसी के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती हैं। पर्यावरण के अंतर्गत जीव-जन्तु, वनस्पति, वायु, जल, प्रकाश, ताप, मिट्टी, नदी, पहाड़ आदि सभी अजैविक तथा जैविक घटकों […]

‘मिशन’ की मीडिया से ‘मुनाफे’ की मीडिया तक का सफ़र – राकेश कुमार दुबे

वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो नव–उदारवादी ताकतों के द्वारा विकासशील मुल्कों के विकास के नाम पर अपने लाभ को हासिल और निरंतर बनाये रखने की व्यवस्था करता है | […]

जनवादी कवि के रूप में मुक्तिबोध – बिद्या दास

हिंदी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केंद्र में रहने वाले विलक्षण प्रतिभा के धनी मुक्तिबोध की छवि एक प्रगतिशील और संघर्षशील संश्लिष्ट कवि के रूप में अधिक प्रचलित रही है, […]